Sunday, 26 February 2017

Awareness About "RAJPUT" term

प्राचीन क्षत्रिय राजपूत #जरूरपढ़े और #शेयरकरे
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आज कल की नयी नयी नवीन धनाढ्य जातिया हर वक़्त राजपूतो को दबाने में लगी है हमारे पास पुख्ता जानकारी है उन समाज के पैसे वाले लोग किराये के एडिटर खरीद कर नेट की दुनिया में राजपूत शब्द गायब करवाना चाहते खुद ही पैसे देकर बुक छपवाते है और उन्हें गूगल बुक पर डाल कर वही रेफेरनेसे विकिपीडिया पर बताते है और खुद को स्वघोषित क्षत्रिय बताना चाहते है
जो की हकीकत में हूँण है और उनके साथ आये उनके नौकर चाकर जो राजपूतो (बाप्पा रावल ,नागभट्ट ,भीमदेव सोलंकी) से हारकर उनके गुलाम बन गए बाद में मुगलो के यहाँ खेती कर दिल्ली के पास 150 किमी की परिधि में 5 बीघा के जागीरदार बंन गए
और उसी जमीनों को बेच आज पैसे वाले
"3 बीघा जमींन 13 भागीदार फिर भी हम जागीरदार"
तो दूसरी तरफ आरक्षण के लिए खुद को चांडाल🗿 घोषित कर देते तो कभी कहते है की कुत्तो से सूंघकर पहचान करवाई जाती है🐕
और हम्हे कहते है की 3वीं शताब्दी से पहले राजपूत नाम क्यों नही आया हकीकत ये है की आज तक का सबसे प्राचीन शिलालेख पांचवी 5वी शताब्दी में मिला था वह राजपूत अंकित है
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एक जवाब उनके लिए हमारी तरफ से पढो आँखे खोल कर पढ़ो
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राजपूत हिन्दी का शब्द है। यह संस्कृत शब्द राजपुत्र शब्द का अपभ्रंश है। यह भाषाविज्ञान से प्रमाणित होता है की पुत्र शब्द का अपभ्रंश 'पूत' है। प्राचीन ग्रन्थों मे राजपूतों के लिय राजपुत्र, रजन्य, बाहुज आदि शब्द भी मिलते हैं। यजुर्वेद जो सायं ईश्वरकृत रचना है मे भी राजपूतों की खूब चर्चा हुई है।

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ब्रध्यतां राजपुत्राश्च बाहू राजन्य कृतः
बध्यतां राजपुत्राणाम क्रंदता मिततेरम .... यजुर्वेद अध्याय 3
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महाराज विक्रमादित्य के कवि अमरसिंघ अपनी रचना अमरकोश मे राजपूत या रजन्य के निम्नलिखित पर्यायवाची शब्द बताते हैं।
भूधारमिषिक्त राजन्यों बाहुज क्षत्रियो विरोट
राजा राट पार्थिव क्षमाभृनृय भूप महिक्षितः
अर्थात मूर्धाभिषिक्त, रजन्य, बहुज, क्षत्रिय, विरोट, राजा, पार्थिव, क्षमाभृनृय भूप और महीक्षित यह सभी क्षत्रियों के ही पर्यायवाची शब्द हैं। इसके बाद पुराणों मे सूर्य और चन्द्र वंश के राजपूतों के वंश हैं, की उत्पत्ति भी क्षत्रियों से मानी गयी हैं
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चंद्रादित्य मनुनांच प्रवाराः क्षत्रियाः स्मृतः
..... ब्रह्मावैवर्त पुराण, 10-15
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इसके अतिरिक्त कालीदास के माल्विकाग्निमित्रम कौटिल्य के अर्थशास्त्र अश्वघोष कृत सौंदरानंद तथा बाण के हर्ष चरित मे भी राजपुत्र शब्द का उल्लेख किया गया है। कवि बाण लिखते हैं -
अभिजात राजपुत्र प्रेष्यमाण कुप्यमुक्ता कुल कुलीन कुल पुत्र वाहने
... सप्तम उच्छ्वास पृष्ठ 364

अर्थात सेना के साथ आभिजात्य राजपूतों द्वारा भेजे गए पीतल पत्रों से मढ़े वाहनों मे कुलीन राजपुत्रों की स्त्रियाँ जा रही हैं ।
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ॠगवेद में
‘कस्य धतधवस्ता भवथ: कस्य बानरा,।
राजपुत्रेव सवनाय गच्छद’॥
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यजुर्वेद में
‘पश्वी राजपुत्रो गोपायति राजन्यों वै प्रजानामधिपति रायुध्रुंव आयुरेव
गोपात्यथो क्षेत्रमेव गोवायते’॥
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ऋग्वेद में 
क्षत्रिय शब्द का उल्लेख हुआ है, जो आर्यों का एक महत्वपूर्ण वर्ग था-

मम द्रिता राष्ट्र क्षत्रियस्य ।
विश्वायोविर्श्वे अम्रता यथा न: ।।

वैदिक काल में इनका दूसरा नाम राजन्य रहा है।
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महाराजा हर्षवर्धन खुद को राजपुत्रः शिलादित्य कहलाना पसन्द करते थे
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नवशशांक - चरित' (९७४ - १०००) ई....नीलकंठ शास्री को अग्निवंश का प्रमाण दक्षिण भारत के एक शासक कुलोतुंग तृतीय (११७८ - १२१६ ई०) के शिलालेख से मिलता है।
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कुमारपाल प्रभंध
राजा कुमार पाल प्रब्न्ध में आप राजपूतो से प्राचीन वंश की जुडी बाते पढ सकते है
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पृथ्वीराजरासो
मध्यकाल से पूर्व में लिखी गयी इस किताब में राजपूतो के 36 राजवंशो का उललेख है
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हम्मीर महा काव्य
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12वीं शताब्दी का बिजोलिया शिलालेख
बिजोलिया में स्थित प्राचीन पार्श्वनाथ मन्दिर की उत्तरी दीवार के पास एक चट्टान पर विक्रम सम्वत् 1226 फाल्गुन कृष्णा तृतीया (5 फ़रवरी, 1170) का एक लेख उत्कीर्ण है। यह लेख बिजोलिया शिलालेख कहलाता है। लेख की पुष्पिका में इसके रचयिता का नाम गुणभद्र, लेखक कायस्थ केशव, खोदने वाले का नाम आदि लिखा हुआ है। इससे एक बात स्पष्ट होती है कि 12वीं शती तक कायस्थ जाति विशेष नहीं होकर लेखक की पदवी होती थी।
बिजोलिया में उपलब्ध लेख संस्कृत भाषा में है। इसमें 13 पद्य हैं। इसमें मन्दिर निर्माण की जानकारी के साथ-साथ सांभर और अजमेर के चौहान वंश के शासकों की उपलब्धियों का भी प्राचीन उल्लेख किया गया है। इस लेख की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें चौहानों के लिए विप्रः श्रीवत्सगोत्रेभूत अंकन हुआ है, जिसके आधार पर डॉ. दशरथ शर्मा ने चौहानों को ब्राह्मण वंश की संतान सिद्ध किया है। कायम ख़ाँ रासो तथा चन्द्रावती के लेख भी चौहानों को ब्राह्मण वंशीय लिखते हैं। डॉ. गोपीनाथ शर्मा भी इसमें अपनी सहमति व्यक्त करते हैं। इस लेख से हमें 12वीं शती के राजस्थान के जन-जीवन, धार्मिक व्यवस्था, भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति का अध्ययन करने में बहुत सहायता मिलती है।
इतिहासकारो ने राजपूतो को भारतीय उपमहादिव्प का प्राचीन क्षत्रिय माना है कुछ इतिहास कारो के नाम और संदर्भ
📘सी वि वैध
📘गौरी शंकर
📘हीराचन्द ओझा
📘डॉ हरिराम
📘डॉ रमेश चंद्र मजूमदार
📘डॉ दशरथ शर्मा
📘विश्वम्भर पाठक
📘के ऍम मुंशी




ये भी देख लीजिये




जिन इतिहासकारो ने राजपूतो को विदेशी और अनार्य माना है उनमे से अधिकतर अंग्रेज थे जो श्रेष्ठठा के चलते राजपूतो को अपने जोड़ना चाहते थे वही भण्डारकर जैसे ब्रिटिश भक्त थे
इतिहासकारों ने राजपूतों को विदेशियों की संतान बताने का सबसे बड़ा कारण यह माना है की छठी शताब्दी से पहले किसी भीप्राचीन ग्रंथ या शिलालेख मे राजपूत शब्द का उल्लेख नहीं मिलता है। बल्कि उसमे राजपुत्र की ही चर्चा मिलती है, वे राजपूत और राजपुत्र शब्द को भिन्न भिन्न मानते हैं। उनका यह भ्रम है क्योंकि राजपुत्र आ अपभ्रंश ही राजपूत है। इसका कारण यह है की एक राजा के कई कई पुत्र होते थे। राजपूतों मे राज्य विभाजन नहीं होता था। अतः राजा का ज्येष्ठ पुत्र सम्पूर्ण राज्य का अधिकारी होता था और राजा कहलाता था।, इसके शेष पुत्र राजा के पुत्र होने के कारण राजपुत्र कहलाते थे। कालांतर मे राजपुत्र शब्द समूहवाचक या जातिवाचक शब्द बन गया। और ढेरे धीरे सारी क्षत्रिय जाती को ही राजपूत कहा जाने लगा। दूसरा कारण प्रजा की रक्षा राज्य करता है। राज्य का स्वामी राजा होता है इसी प्रकार राजा की संतान राजपूत कहलाने लगे। जैसे राजपूतों की एक उपाधि ठाकुर होने के कारण इस जाती को कहीं कहीं ठाकुर जाति भी कहा जाता है।
जिन्होंने विदेशी माना है उनके नाम
कर्नल टॉड
विलिएम्स कुक
स्मिथ
भण्डारकर
भंडारकर जिन्होंने विदेशी कहा उनके लिए साफ़ साफ़ लिखा है की उनका व्यक्तितत्व विशुद्ध भारतीय था वही ये भी लिखा है की ब्रिटिश समर्थक थे वही ये जानब ब्रिटिश विरिधियो की समर्थन भी करते लोग इन देश भक्त नही मानते थे
ये हमने नही लिखा यहाँ चटका लगाये और देखे
https://books.google.ae/books

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