1910 में अलाहाबाद में हुए अहीर महासभा
https://books.google.co.in/books?id=LaINywMCwgAC&pg=PA181&dq=%22+Ahir+Yadav+Kshatriya+Mahasabha%22&hl=en&redir_esc=y#v=onepage&q&f=false
https://books.google.co.in/books?id=LaINywMCwgAC&pg=PA181&dq=%22+Ahir+Yadav+Kshatriya+Mahasabha%22&hl=en&redir_esc=y#v=onepage&q&f=false
Book:- India's Silent Revolution: The Rise of the Lower Castes in North India
Auther:- Lucia Michuletti (Yadav Expert)
https://books.google.co.in/books?id=OAkW94DtUMAC&pg=PA189&lpg=PA189&dq=arya+samaj+ahir+yadav&source=bl&ots=lRv1CaiuPf&sig=vhyIgDOtl0OIM_mjkZj85uvvGwI&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwiqi7uZ0MLUAhVIQ48KHYyxCiQQ6AEIOTAE#v=onepage&q&f=false
https://books.google.co.in/books?id=OAkW94DtUMAC&pg=PA189&lpg=PA189&dq=arya+samaj+ahir+yadav&source=bl&ots=lRv1CaiuPf&sig=vhyIgDOtl0OIM_mjkZj85uvvGwI&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwiqi7uZ0MLUAhVIQ48KHYyxCiQQ6AEIOTAE#v=onepage&q&f=false
रेवाड़ी के अहीरों का जादौन से निकलना
मूसलपर्व का अंग्रेजी अनुवाद
Book- The Confusion
Book :- South Asia: Politics of South Asia
https://books.google.co.in/books?id=LaINywMCwgAC&pg=PA181&dq=%22+Ahir+Yadav+Kshatriya+Mahasabha%22&hl=en&redir_esc=y#v=onepage&q&f=false
https://books.google.co.in/books?id=LaINywMCwgAC&pg=PA181&dq=%22+Ahir+Yadav+Kshatriya+Mahasabha%22&hl=en&redir_esc=y#v=onepage&q&f=false
Book:- India's Silent Revolution: The Rise of the Lower Castes in North India
Auther:- Lucia Michuletti (Yadav Expert)
https://books.google.co.in/books?id=OAkW94DtUMAC&pg=PA189&lpg=PA189&dq=arya+samaj+ahir+yadav&source=bl&ots=lRv1CaiuPf&sig=vhyIgDOtl0OIM_mjkZj85uvvGwI&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwiqi7uZ0MLUAhVIQ48KHYyxCiQQ6AEIOTAE#v=onepage&q&f=false
https://books.google.co.in/books?id=OAkW94DtUMAC&pg=PA189&lpg=PA189&dq=arya+samaj+ahir+yadav&source=bl&ots=lRv1CaiuPf&sig=vhyIgDOtl0OIM_mjkZj85uvvGwI&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwiqi7uZ0MLUAhVIQ48KHYyxCiQQ6AEIOTAE#v=onepage&q&f=false
रेवाड़ी के अहीरों का जादौन से निकलना
मूसलपर्व का संस्कृत श्लोक
मूसलपर्व का अंग्रेजी अनुवाद
इम्पीरियल गजेटर्स ऑफ़ इंडिया में अहीरों को गडरिया के समानांतर रखा गया
अहीर/गडरिया एक ही
तुलाराम का माफीनामा
शेखावतो के साथ हुए युद्ध में मित्रसेन अहीर की हार
व्यास स्मृति :- अहीर शुद्र
The Hindu के अनुसार मैसूर के वाडियारों का निकास राजपूतों से
Zee News के अनुसार वाडियारों का निकास जाडेजा राजपूतों से
Ahirs are Shudra
Book- The Confusion
By Neal Stephenson
https://books.google.co.in/books?id=C0zkK0Kg4yMC&pg=PA440&lpg=PA440&dq=subcaste%20of%20the%20shudra%20ahir&source=bl&ots=IaUQ52LD1t&sig=ktgf1vimHzk4oEkktEl9EqIo7aE&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwj827i0tMTUAhXJPY8KHSBhB-AQ6AEISDAE#v=onepage&q=subcaste%20of%20the%20shudra%20ahir&f=false
2

महिषासुर वंशी अहीर
अहीर असल में
महिषासुर के वंशज हैँ। महिष का मतलब भैंस होता है और इसीलिए अहीर भैंस चराते हैँ।
ये बात किसी और ने नही बल्कि खुद ये अहिर सबको बता रहे हैँ, अपनी पत्रिकाओ में छाप रहे हैँ और
महिषासुर की जयंती भी मनाते हैँ हर साल। इस लिंक में सबूत देख लो
--- Leftists condemn ‘Vijayadashami’; celebrate ‘Mahishasur shahadat diwas’ –
--- Leftists condemn ‘Vijayadashami’; celebrate ‘Mahishasur shahadat diwas’ –
http://www.newsbharati.com/.../Leftists-condemn...
"Like the tribals, the Yadavs also claim to
be descendants of Mahishasur. One view
is that the name Mahishasur is derived
from ‘Mahish’, meaning buffalo, the
main source of sustenance for both the
Yadavs and tribals. Yadav will organise
the Mahishasur Martyrdom Day in
Sitapur, Uttar Pradesh. It will also be
celebrated in Kaushambi, Deoria, Sant
Kabir Nagar, Unnao and Maharajganj
districts of the state."
लेकिन इन गधो में इतनी अक्ल नही है की एक तरफ तो ये अपने को आर्य विरोधी असुर बता रहे है और दूसरी तरफ आर्य क्षत्रियो का वंश यादव भी अपने नाम के आगे लगा रहे हैँ।
"Like the tribals, the Yadavs also claim to
be descendants of Mahishasur. One view
is that the name Mahishasur is derived
from ‘Mahish’, meaning buffalo, the
main source of sustenance for both the
Yadavs and tribals. Yadav will organise
the Mahishasur Martyrdom Day in
Sitapur, Uttar Pradesh. It will also be
celebrated in Kaushambi, Deoria, Sant
Kabir Nagar, Unnao and Maharajganj
districts of the state."
लेकिन इन गधो में इतनी अक्ल नही है की एक तरफ तो ये अपने को आर्य विरोधी असुर बता रहे है और दूसरी तरफ आर्य क्षत्रियो का वंश यादव भी अपने नाम के आगे लगा रहे हैँ।
विष्णुपुराण में अहीरों के खिलाफ साक्ष्य

विष्णुपुराण अध्याय नंबर 38 व श्लोक नंबर 26 उपर वाली फोटो

विष्णुपुराण अध्याय 38 श्लोक नंबर 13 14

विकिपीडिया

भारत में जादौन ठाकुर तो जादौन पठानों का छठी सदी में हुआ क्षत्रिय करण रूप है । क्योंकि अफगानिस्तान अथवा सिन्धु नदी के मुअाने पर बसे हुए जादौन पठानों का सामन्तीय अथवा जमीदारीय खिताब था तक्वुर जो भारतीय भाषाओं में ठक्कुर - ठाकुर ,टैंगॉर तथा ठाकरे रूपों में प्रकाशित हुआ। जमीदारी खिताबो के तौर पर भारत में इस शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए सबसे पहले हुआ ---जो तुर्की काल में जागीरों के या भू-खण्डों के मालिक थे । उस समय पश्चिमीय एशिया तथा भारतीय प्राय द्वीप में इस्लामीय विचार धाराओं का भी आग़ाज (प्रारम्भ) नहीं हुआ था। उसके लगभग एक शतक बाद ई०सन् 712 में मौहम्मद बिन-काशिम अरब़ से चल कर ईरान में होता हुआ भारत में सिन्धु के मुहाने पर उपस्थित होता है। उस समय जादौन पठानों के कबीलों में अपने रुतबे का इज़हार करने के लिए सामन्तीय अथवा जमीदारीय खिताब के रूप में तक्वुर( tekvur) शब्द का प्रचलन था । तब जादौन पठान ईरानी एवं यहूदी विचार धारा से ओत-प्रोत थे । सर्वत्र ईसाई विचार धारा का बोल-बाला था । यहाँ ठाकुर शब्द की व्युत्पत्ति पर एक प्रमाण Origin and meaning of tekvur name.. The Turkish name, Tekfur Saray, means "Palace of the Sovereign" from the Persian word meaning "Wearer of the Crown". It is the only well preserved example of Byzantine domestic architecture at Constantinople. The top story was a vast throne room. The facade was decorated with heraldic symbols of the Palaiologan Imperial dynasty and it was originally called the House of the Porphyrogennetos - which means "born in the Purple Chamber". It was built for Constantine, third son of Michael VIII and dates between 1261 and From Middle Armenian թագւոր (tʿagwor), from Old Armenian թագաւոր (tʿagawor). Attested in Ibn Bibi's works...... (Classical Persian) /tækˈwuɾ/ (Iranian Persian) /tækˈvoɾ/ تکور • (takvor) (plural تکورا__ن_ हिन्दी उच्चारण ठक्कुरन) (takvorân) or تکورها (takvor-hâ)) alternative form of Persian in Dehkhoda Dictionary तुर्कों की कुछ शाखाऐं सातवीं से बारहवीं सदी के बीच में मध्य एशिया से यहाँ आकर बसीं। इससे पहले यहाँ से पश्चिम में आर्य (यवन, हेलेनिक) और पूर्व में कॉकेशियाइ जातियों का बसाव रहा था। यहाँ हर्षवर्धन (590-647 ई.) प्राचीन भारत में एक राजा था जिसने उत्तरी भारत में अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया था। उसके राज्यविस्तार के पतन के बाद यहाँ विदेशीयों हूणों कुषाणों तथा तुर्कों एवं सीथियन Scythian जन-जातियाें का राजपूतीकरण हुआ । जिनमें सिन्धु और अफगानिस्तान के गादौन / जादौन पठानों की भी संख्या थी। ठाकुर शब्द के मूल रूप के विषय में हम आपको बताऐं! कि तुर्किस्तान में (तेकुर अथवा टेक्फुर ) परवर्ती सेल्जुक तुर्की राजाओं की उपाधि थी। बारहवीं सदी में तक्वुर शब्द ही संस्कृत भाषा में ठक्कुर शब्द के रूप में उदिय हुआ । संस्कृत शब्दकोशों में इसे ठक्कुर के रूप में लिखा गया है। कुछ समय तक ब्राह्मणों के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता रहा है । क्योंकि ब्राह्मण भी जागीरों के मालिक होते थे । जो उन्हें राजपूतों द्वारा दान रूप में मिलती थी। और आज भी गुजरात तथा पश्चिमीय बंगाल में ठाकुर ब्राह्मणों की ही उपाधि है। तुर्की ,ईरानी अथवा आरमेनियन भाषाओ का तक्वुर शब्द एक जमींदारों की उपाधि थी । समीप वर्ती उस्मान खलीफा के समय का हम इस सन्दर्भों में उल्लेख करते हैं। कि " जो तुर्की राजा स्वायत्त अथवा अर्द्ध स्वायत्त होते थे ; वे ही तक्वुर अथवा ठक्कुर कहलाते थे " उसमान खलीफ का समय (644 - 656 ) ई०सन् के समकक्ष रहा है । भारत में यहाँ हर्षवर्धन का शासन तब क्षीण होता जारहा था । उस्मान को शिया लोग ख़लीफा नहीं मानते थे। सत्तर साल के तीसरे खलीफा उस्मान (644-656 राज्य करते रहे हैं) उनको एक धर्म प्रशासक के रूप में निर्वाचित किया गया था। उन्होंने राज्यविस्तार के लिए अपने पूर्ववर्ती शासकों- की नीति प्रदर्शन को जारी रखा । इन्हीं के मार्ग दर्शन में तुर्कों ने इस्लामीय मज़हब को स्वीकार किया। ठाकुर शब्द विशेषत तुर्की अथवा ईरानी संस्कृति में अफगानिस्तान के पठान जागीर-दारों में भी प्रचलित था पख़्तून लोक-मान्यता के अनुसार यही जादौन पठान जाति ‘बनी इस्राएल’ यानी यहूदी वंश की है। इस कथा की पृष्ठ-भूमि के अनुसार पश्चिमी एशिया में असीरियन साम्राज्य के समय पर लगभग 2800 साल पहले बनी-इस्राएल के दस कबीलों को देश -निकाला दे दिया गया था। और यही कबीले पख़्तून थे । मुग़ल काल में भी अकबर से लेकर अन्तिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र तक , हर मुग़ल शासक अकबर के बाद तक़रीबन सारे बादशाह राजपूत कन्याओ से ही पैदा हुए । - जहाँगीर , शाहजहाँ , औरंगज आदि....
ReplyDeleteबहुत सुंदर योगेश रोहि भाई
Deleteye woh bahari kabile ke log hain..jinhe havan karke pavitra karke hindu dharam main shamil kiya gaya hai..issiliye ye khud ko agnikul ke khstriya batate hain..inse koi ye pooche ki yogmaya jo nandbaba aur yashoda maa ki beti thi woh kaun hain..to issipe inka gyan tel lene chala jayega..Krishna ko log jindagi bhar apmanit karte rahe..shishupal unhe bhare darbar main galiya deta raha..akhir uska sir kaat liya krishna ne..aur balram ko hamesha hal ke saath dikhaya hai..ye shishupal ke vanshaz hain..inka krishna se door door tak lena dena nhi hai...ye bakri bhainsh sabki bali dete hain aur phir uska meat prasad ki tarah khate hain..banajara samaj ke gotra dekh lijiye usme inke saare gotra mil jayenge..unki women jis tarah dress pehnti hai..ussi tarah se inke yahan bhi dressup karti hain..ye Ram krishna nhi balki banjare hain jo 16th century main paise ke dum par Rajput ban gaye..hume sudra bolne se pehle apne aap ko dekho
DeleteAap copy paste kar rahe h
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteतुर्को और सिंथियन ये (तुर्वसू यदु के भाई)rule of turvsu तूर्वसु से तुर्की त्तूर्को ने इस्लाम स्वीकारा तूर्को (तुर्की)उससे पहले(पूर्व) तेंग्री निसर्ग/प्रकृती के उपासक थें (तुर्की/तुर्वसु चंद्रवंशी क्षत्रिय हे.)और सभी सम्राट ययाती की संतान वंशज हे मनुष्य बडेभाग्य से मिलता हे ना कोई श्रेष्ठ हे ना शूद्र/दास मनुष्य अपने संचित कर्म से प्रारब्ध को भुगता हे. राधे राधे भारत. माता की जय भारत हमारा देश हे भारतीय वसुधैवकुटुंबकम में विश्वास करते हे सप्त ऋषियो के गोत्र सर्व जाती वंश कुल में दिखाई देते हे चाहे वे किसी भी वर्ण से हो आगे बढे कुरीतियो को छोडो Covid-19 की आपदा मे मानव जती के लिये treatment to एक क ही हे मानवधर्म का पालन करे आपसी ऊच नीचं व्यर्थ हे जयहिंद
Deleteडॉ. पंडीत सत्येन दिलिप तुर्की (तूर्कीपोरा काश्मीर)
Deleteयादवों का व्रज क्षेत्र की परिसीमा करौली का इतिहास---
ReplyDeleteधर्म्मपाल से लेकर अर्जुन पाल तक ----
प्रस्तुति-करण:-
यादव योगेश कुमार "रोहि"
________________________
१-धर्म्मपाल
२-सिंहपाल
३-जगपाल
४- नरपाल
५-संग्रामपाल
६-कुन्तपाल
७-भौमपाल
८-सोचपाल
९-पोचपाल
१०-ब्रह्मपाल
११-जैतपाल ।
करौली का इतिहास प्रारम्भ होता है विजयपाल से ---
यह बारहवाँ पाल शासक था ---
1030 ई०सन् विजयपाल
१२- विजयपाल (1030)
१३- त्रिभुवनपाल(1000)
१४-धर्मपाल (1090)
१५- कुँवरपाल (1120)
१६-अजयपाल(1150)
१७-हरिपाल ( 1180)
१८-सुघड़पाल(1196)
१९- अनंगपाल(1120 )
२०- पृथ्वी पाल (1242)
२१- राजपाल (1264)
२२- त्रिलोकपाल(1284)
२३-विप्पलपाल(1330)
२४-गुगोलपाल(1352)
२५-अर्जुनपाल(1374)
२६- विक्रमपाल(1396)
२७-अभयन्द्रपाल (1418)
२८- पृथ्वी राज पाल (1440)
२९चन्द्रसेनपाल(1462)
३०-भारतीचन्द्रपाल(1484)
३१-गोपालदास (1506)
३२- द्वारिका दास(1528)
३३-मुकुन्ददास(1550)
३४- युगपाल(1572)
३५-तुलसीपाल (1894)
३६- धर्म्मपाल(1616)
३७-रतनपाल(1638)
३८-आरतीपाल ( 1860)
३९- अजयपाल(1682)
४०-रक्षपाल (1704)
४१-सुधाधरपाल( 1726 )
४२-कँवरपाल(1748 )
४३-श्रीगोपाल( 1770 )
४४-माणिक्यपाल( 1792 )
४५-अमोलपाल(1814 )
४६-हरिपाल ( 1836)
४७-मधुपाल (1856 )
४८-अर्जुन पाल (1879)
उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्ध तक अड़तालीस यदुवंशी पाल उपाधि धारक शासकों की शासन सत्ता रही व्रज क्षेत्र कि परिसीमा करौली रियासत में ---👇
करौली के ये शासक अपने नाम- के बाद पाल उपाधि लगाते थे ।
कुछ ने दास उपाधि को भी लगाया।
_________________________
दास शब्द और गोप शब्द ऋग्वेद के कई सन्दर्भों में यदु और तुर्वसु के लिए आया है ।
ऋग्वेद 10/62/10
उत् दासा परिविषे स्मत्दृष्टी गोपर् ईणसा यदुस्तुर्वशुश्च ।।ऋ०10/62/10
वस्तुत ये समग्र समीकरण मूलक प्रमाण अहीरों के पक्ष में हैं कि करौली के शासक स्वयं को पाल अथवा गोपाल या गोपोंं के रूप में ही प्रस्तुत करते हैं ।
प्राचीन काल में यादवों की एक शाखा कुकुर कहलाती थी । ये लोग अन्धक राजा के पुत्र कुकुर के वंशज माने जाते थे । भारतीय पुराणों में यादवों के कुछ कबीलाई नाम अधिक प्रसिद्ध रहे विशेषत: भरतपुर के जाटों , गुज्जर तथा व्रज क्षेत्र के अहीरों में । जैसे दाशार्ह से विकसित रूप देशबाल -दशवार , सात्वत शब्द से विकसित रूप - सावत सोत तथा सूद आदि , कम्बल से कम्बल तथा कमरिया रूप ---जो राजस्थान के भीलबाड़ा क्षेत्र से निर्गत हुए । ये सभीे शब्द कालान्तरण में हिन्दी की व्रज बोली में प्रचलन हुए। इसी प्रकार कुक्कुर शब्द से कुर्रा , कुर्रू ककुरुआ आदि रूपों का विकास हुआ । कुकुरो भजमानश्च शुचिः कम्बलबर्हिषः । “अन्धकात् काश्यदुहिता चतुरोलभतात्मजान् कुकुरं भजमानं च शमं कम्बलबहिषम्” हरिवंश पुराण ३८ ये वस्तुत यादवों के कबीलागत विशेषण हैं । कुकुर एक प्रदेश था । जहाँ कुक्कुर जाति के यादव रहते थे ; यह प्रदेश राजपूताने के अन्तर्गत था ; जो कभी मत्स्य देश था । और कालान्तरण में उसके वंशजों द्वारा इसका पुन: नामकरण हुआ कुकुरावलि। कुकुर अवलि =कुकुरावलि --कुरावली---करौली _________________________
संस्कृत ग्रन्थों में कुकुर यादवों के विषय में पर्याप्त आख्यान परक विवरण प्राप्त होता है । कोश ग्रन्थों में इस शब्द की व्युत्पत्ति काल्पनिक रूप से इस प्रकार दर्शायी गयी है । जैसे कुम् पृथिवीं कुरति त्यजति स्वामित्वेन इति कुकुर इति कुकुर कथ्यते। अर्थात् दो स्वामित्व से द्वारा अपनी भूमि त्यागता है वह कुकुर है ।। अग्र प्रकरण में पुराणों से उद्धृत ये तथ्य अनुमोदक हैं ।👇 यदुवंशीयनृपभेदे तेषां ययातिशापात् राज्यं नास्तीति पुराणकथा । अर्थात् यदु के वंशज जिनके पूर्वज यदु ने ययाति के शाप से राज्य प्राप्त नहीं किया । “ कुकुरनृपश्चान्धकुकुरः भजमानशुचिकम्बलबर्हिषास्तथान्धकस्य पुत्राः” इति विष्णु पुराण। वारगाथा काल में नल्ह सिंह भाट द्वारा विजय पाल रासो के रचना की गयी । नल्हसिंह भाट कृत इस रचना के केवल '42' छन्द उपलब्ध है। विजयपाल, जिनके विषय में यह रासो काव्य है, विजयगढ़, करौली के 'यादव' राजा थे। इनके आश्रित कवि के रुप में 'नल्ह सिंह' का नाम आता है। रचना की भाषा से यह ज्ञात होता है कि यह रचना 17 वीं शताब्दी से पूर्व की नहीं हो सकती है। और विजयपाल का समय 1030 के समकालिक है ।
अस्तु काल के प्रभाव से मथुरा को त्याग कर जब विजयपाल के वंशज सम्वत् 1052 में बयाने के पास बनी पहाड़ी की उपत्यका में ये जा बसे | क्यों कि बयाना वज्रायन शब्द का तद्भव रूप है । और वज्र कृष्ण के प्रपौत्र (नाती) थे । पुराणों में वज्रनाभ का वर्णन इस प्रकार है :- श्रीकृष्णप्रपौत्त्रः- यथा -“ अनिरुद्धात् सुभद्रायां वज्रो नाम नृपोऽभवत् । प्रतिबाहुर्वज्रसुतश्चारुस्तस्य सुतोऽभवत् ॥ “ इति गरुडपुराण १४४ अध्याय....
Jadon gadariya hai samjha tumhare Mai poore gotra bhi nahi milte mahabharat Mai 106 prakaar ke yaduvanshi Thai bhati bhatner ke gujjer se nikle aur chudasama ahirana gajpati let vanshaj hai sun
ReplyDeleteAshok nagar mugwali chanderi riyasat matshya vanshi yadavo ki hai thakur Jai Narayan Singh yaduvanshi Shri Krishna ki 8 ranio ke putra SE bahut saare vansh chale samnjha
बहुत सुन्दर
Deleteजादौन राजपूत है गड़रिया नहीं
DeleteJadaun gadriya the ye itihas me likha tha praman bhi hai
DeleteLekin log bhatak gye hai
बहुत सुंदर भाई
DeleteAbe. Ahir se jadaun huye na ki jadaun se ahir.. Sirf karauli k hi jadaun ur ahir ek hai baki k jadaun banjara k vansaj hai.. Ur rao tularam k mafinama kaha hai.. Wo to tm jaise dogle ne type krwaya hai
ReplyDeleteUr ye vyas smriti ab likha gaya hai.. Jhooth sb.. Koi fark nahi padne wala hai. Tm chutuyo se
ReplyDeleteSekhawat se huye yudh m mitrsen hare nahi the maddan ki ladai m.. Jake pta kr le bete
ReplyDeleteUr maysor k wadiyar family aaj bhi kahti hai ki aaj k rajput jati se unka koi sambandh nahi hai. Wo yadav hai.
ReplyDeleteगधा जादौन को कुछ अकल नही है जो अपने बाप को बाप बताना नही चाहता है
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण ।भाईयो गडरिया ओर अहिर मे कोइ फर्क नही हे ।
ReplyDeleteअब आते हे करौली राजवंश पर।तो प्रथम मे हाथ जोड़ कर माँ राज राजेश्वरी केला देवी को नतमस्तक हो कर प्रणाम कर्ता हू।
करौली माता के मंदिर मे बने बहुरा भगत के समाधि स्थल ।
बहुरा भगत इक ग्वाल (गड़रिया) थे ।उन्के पुत्र विजय पाल ने ही करौली राजवंश की स्थापना की ।इस का प्रमाण करौली राजवंश के राजचिन्ह मे भी दिखाई देता हे ।करौली राजचिन्ह मे इक तरफ भेड़ ओर दुसरी तरफ गाय बनी हूई हे। इस से ज्यादा प्रमाण क्या हो सकता हे।जिस को दिन मे भी दिखाई ना दे उसे क्या कहते हे आप लोग जानते होंगे।
।।बौलौ करौली वारी मईया की जय ।।
।।बौलौ बहुरा भगत की जय ।।
कोइ भी राजपूत अपने को करौली राजवंश से ना जोड़े
अपना इतिहास ओर कही जाके के खोजे ।
जय श्री कृष्ण ।। जय माधव जय यादव ।।
यदुकल शिरोमणि भगवन श्री कृष्ण को बारम्बार प्रणाम
'बहुत सुन्दर वचन
Deleteजय करौली मैया की जय जय धनगर
Deleteयदुवंशी श्री कृष्ण भगवान की जय
Bahut sundar Dharm bhai,Rajput my foot,saale randput bhagode kahike.Jay Yaduvansh.
Deleteअहीर गडरिया एक ही है
ReplyDeleteTum aur mughal ek hi hi ho 1o71 saadiya ki hai sharm karo kuch sudhar jao hinduo ke duaman
Deleteगडरिया महाराजाओ ने भारत पर ४००बर्स राज किया गडरिया यदुबंशी है आगे चलकर जादातर गडरिया जाति यादव अहीर मे बिल्पुत हो गयी
ReplyDeleteएम एस बघेल
DeleteGadaria nich jaati hoti hain hamare yaha hamesha laat khati hain humse hum baniye gadaria ki watt lagate hain
DeleteTeri maa neechi haath bhen ki Lodi ke
DeleteTeri maa neechi haath bhen ki Lodi ke
DeleteRandi Ka baccha kshtriya hote hai gadariya
Deleteपक्थ एक वैदिक जाति थी जिसने दाशराज्ञ युद्ध में भाग लिया @योगेश रोही
ReplyDeleteOk
ReplyDeleteYadav bhaio ham Sab ek hai ham logo ke bich fut dalne ki pandito ki chal hai
ReplyDeleteएक यही समस्या है तुम लोगों की सही इतिहास बता दें तो चाल है ये
Deleteराजपूतों ने जादौन को चने के झाड़ पर चढ़ाकर यदुवंशी राजपूत घोषित किया है, अब ये जादौन बाप को बेटा बनाने चले है। आजतक जादौन सो रहे थे, इनको पताही नहीं था कि ब्रह्मपाल अहीर जादौन का बाप है। वो भी सिर्फ करौली के जादौन भ्रह्मपल अहीर के बच्चे है बाकी सब जादौन बंजारे है।
Deleteएक दम सही जानकारी अभी कुछ अहीर आकर इससे खुदको जोड़ने की कोशिश करेंगे पाए... करौली नरेश और उनका परिवार भाटी जादौन जडेजा तीनों भाई है... साथ ही साथ इनकी उत्पति और कृष्णा भगवान से अब तक की वंशावली भी मिलती है... पर मेरे शुद्र अहीर से निवेदन है कि किसी और के इतिहास को चुराने के जगह खुद के वंशावली का प्रमाण खोजे.. अहीर और यदुवंश मे बहुत अन्तर है इसे एक दूसरे से ना जोड़े..
ReplyDeleteAheer hi asli Yadavanshi hai aur Shan se Yadav likhte hai.jo Yadav title nhi lagate be Yadav banna chah rhe hain.brahmpal aheer kon The unke bare me pata kro.
Deleteजिस भी व्यक्ति ने करौली राज चिन्ह की गलत व्याख्यान किया है उसे बता देना चाहता हूं जादौन राज चिन्ह मे एक तरफ शेर क्षत्रिय का प्रतीक है बीच मे गाय यदुवंश का प्रतीक है और एक तरफ मेड यानी बकरी का बच्चा, जो लोग बकरी के बच्चे के निशान का मतलब नहीं जानते उन्हें बताना चाहता हूँ कल्याणपुरी या करौली की स्थापना से पहले जब यहा पाल जी आए तब उन्होंने एक बकरी के बच्चे को शेर से लड़ते देखा था, जिस भूमि पर एक कमजोर भी सशक्त हिम्मत रखता हो वो भूमि कल्याणकारी होगी इसलिए इसका नाम कल्याणपुरी और आज आगे चलकर करौली हुआ... तो जो फालतू का अनपढ़ ज्ञान दे रहे है वो जाकर पहले research सही करे... राज चिन्ह सिर्फ राजाओ और रियासतों के हुआ करते थे.. चूंकि अहीर सिर्फ ग्वाले थे इसलिए आज के समय मे वो खुद को कृष्ण भगवान से जोड़ रहे है बाकी उनके पास कुछ भी नहीं है, उन्हें इस तरीके से किसी और का इतिहास चुराने की जगह खुद की पहचान ढूंढनी चाहिए!
ReplyDeleteTeri maa ki chut,saale Randput,itna khandan ka hai to vo Jodha kya Akbar ke pas tel lagaane gayi thi,bhosdike.
DeleteBhsdika history me iska koi proof nhi hai jodha bai naam ki koi rani thi apni aatma ko shantusti pahunchao Rajput kbhi nhi bn skte
DeleteChutiye apna itihas pado huno ki oulad ho tum kahe ke Rajput or jha tak Ahir yadav ka saval hai to be hi asli chatriya hai chahe jha pad Lo Mahabharat visnupuran khi bhi dekh lo.
Deleteअज्ञानी सत्य को छिपाकर मेड यानी बकरी के बच्चे को शेर से लड़ता दिखाकर और इसे सही मानकर अपनी घोर मूर्खता का परिचय दे रहे हैं |राज चिन्ह स्वतः जाति सिद्ध कर रहा है कि भेंड़ बकरी गाय चराकर ग्वाला अहीर समाज से सिंह बने वर्ण शंकर राजपूत जो इतिहास में मुस्लिमो से पराजित होकर मुस्लिमों को अपनी बहन बेटियाँ ब्याह कर अपनी जागीरें बचाईं |उसके बाद ये अंर्गेजो से पराजित हुए |देश दो बार गुलाम हुआ |कोई भी युद्ध राजपूत नही जीत पाये |इसका मुख्य कारण है कि ये अपने बाप से अलग हो गये |बाप कौन है समझे |
ReplyDeleteयादवे तौरणे गोपौ वसुदेव सुता बुभौ |
ReplyDeleteआहुक जन्मवन्तश्चा$$भीराः क्षत्रियः अभवत |
हरिवंश पुराण मे जरासन्ध ने कहा मैं यदुवंशी गोप वसुदेव के दोनों पुत्रों को अभी मार डालूंगा |वृहज्जोषर्णव गर्न्थ तथा शक्ति संगम तन्त्र मे लिखा है कि यदुवंशियों में उत्पन्न आहुक वंशी अहीर यदुवंशी क्षत्रिय हैं |
नन्द क्षत्रियः गोपालनाद गोपः
ReplyDeleteपूजितः सुखमासीनः पृष्टवानामयमाद्दतः |( ब्रम्ह पुराण )
आभीर गुर्जर वस्भा ,त्रयोधरी यदुवंश समभूताः |
ReplyDeleteपुरुजिदुक्म रूक्मेषु पृथु ज्यामघ संज्ञिताः |
क्षत्रिन में शिरमौर हैं गूजर जाट अहीर |
जाति जननि रक्षा करो ,सब यादव रणवीर |
M ,L,yadav ap ne gurjar jat to gop bna diya likin gadariya likhne me sharm ati h kiya yaha bhi rajniti h kiya
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Deleteयदुकुल गोप अहीर सब,कुरु पाण्डव दल धीर |
ReplyDeleteसकल एक कुल के कहे,क्षत्रिय दल बल वीर |
यदुकुलावतंसस्य वरीयान गोपः पँच प्राण तुल्येषु |
ReplyDeleteपँच सुतेषु मुख्य तमस्य नंद राया |
भा० 10अ०5में ब्रह्यलिखि श्रीकृष्ण की जन्म कुन्डली जो कि शालिगराम कृत सुखसागर में कहा गया यदवंशी प्रसिद्ध राजा परर्जन्य गोप के प्राणों के समान पाँच पुत्र थे| जिनमें नन्दराय मुख्य थे |
ReplyDeleteयः श्रुणोति चरितं वै गोलोकारोहणं हरेः |
ReplyDeleteमुक्तिं यदूनां गोप्यनां सर्व पापैः प्रमुच्यते |
गर्ग संहिता अश्वमेध खण्ड अ० 60 41 मे गर्गाचार्य के ही वचन कि इन यदुवंशी गोप अहीरों की लीला चरित्र जो पढे़गा या सुनेगा |वह सभी पापों से मुक्त हो जायेगा |
सूर्य वंशी राजा हरिश्चन्र्द के यहाॅ लाखों गायें थी|वह रोज एक गाय ब्राह्मण को दान दिया करते थे |
ReplyDeleteराजा विराट के यहाॅ लाखों गायें थीं |
राजा दुर्पद के यहाॅ लाख गायें थीं|जिसे दोर्णाचार्य अर्जुन से युद्ध कराकर सम्पूर्ण गाय अपने यहाॅ ले आये थे |ये राजा भी गोपालन करते थे|राज सत्ता स्थापित करने के लिए यदु ने बहु पत्नी की व्यवस्था स्थापित की |सूर्य व़शी राजा मान्धाता के पुत्र यवनाश्व की बहन प्रभावती नागपुर के नाग वंशी राजा धूम्रवर्ण को विवाही थी |इसी नाग राज की पांच राजकुमारियां राजा यदु को विवाही गयी |इनसे पांच बडे़ प्रतापी पुत्र हुए |बाद में सभी यदुवशियों ने बहु पत्नी विवाह
शुरु कर दिया |वसुदेव की स्वयं अट्ठारह रानियां थीं |
यादवों की संख्या साठ करोड़ पहुॅच गयी|सजातीय संख्या बल की ताकत से धरती पर अनेकों राजा राज सत्ता स्थापित किये |करोडो़ की संख्या होने के कारण जाति के
महत्वपूर्ण व्यक्तियों के नाम अनेकों यदुवशियों मे जातियां बनती चली गयीं |उन्हीं यदुवंशियों में अहीर जाट गुर्जर आदि सैकडो़ जातियां बनी |जितनी जातियां बनी |उनसे अनेकों राजा हुए हैं |इतिहास के पन्ने पलट कर तो देखिये |
बाबा नन्द और बसुदेव सगे चचेरे भाई थे| बाबा नन्द की पत्नी यशोदा और बलराम की माता रोहिणी सगी बहनें थी |बाबा नन्द गोपराष्टृ के प्रमुख थे|उनके यहाॅ अहीर गोपों की
ReplyDeleteवीर सेना थी |इसी सुरक्षा की वजह से बसुदेव भगवान कृष्ण को बाबा नन्द के संरक्षण में ले गये|कंस के पास विशाल सेना थी |लेकिन कंस की गोकुल मे सेना भेजने की हिम्मत नही ंपडी़|इसीलिए छल से एक -एक राक्षस भगवान कृष्ण को मारने के लिए भेजता रहा और भगवान कृष्ण अपनी शक्ति से राक्षसों का वध करते रहे |
भगवान कृष्ण ने गोकुल मे गोप अहीरों से कर्म काण्ड की पूजा बन्द करने के लिए कहा |क्योंकि हर वर्ष पुरोहित वर्ग कर्म काण्ड कराता था |जिसमें पशुबलि की पृथा थी |
गोप अहीरों ने भगवान कृष्ण की आज्ञा का अनुपालन करते हुए कर्म काण्ड का विरोध कर दिया |जिससे पुरोहित वर्ग नाराज हो गया |क्योंकि यह उनकी आय का मामला था |
इसी कारण से पुरोहित वर्ग नाराज होकर यदु , तुर्वसु ,गोप अहीरों के विषय में अवांछित टिप्पणियां ग्रन्थों में बाद में ईर्ष्या के कारण जोड़ दी हैं |अन्य जातियों की भी निन्दा की है जो भगवान कृष्ण की कट्टर समर्थक थीं |
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ReplyDeleteपरशुराम के पिता ब्राह्मण और माता क्षत्राणी थी |
Deleteपरशुराम का पिता सहस्त्रबाहु अहीर था। और माता सहस्त्रबाहु अहीर की शाली रेणुका थीं।
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ReplyDeleteभा०11,2,19मे मनु वंशी राजा ऋषभदेव के कुछ पुत्रो से भी ब्राह्मण वंश चला |ये क्या थे क्या बन गये|
ReplyDeleteभा० 9,17,11मे राजा गम्भीर के पुत्र अक्रिय थे |अक्रिय की पत्नी से भी ब्राह्मण वंश चला था|
ReplyDeleteब्राह्मण,क्षत्रिय,राजपूत तथा वैश्य को इसीलिए सवर्ण कहा जाता है|क्योंकि इनमें सभी वर्णो का सम्मिश्रण हुआ है |इन्हें द्विजाति भी कहा गया है |क्योंकि ये निःसंतान होने पर अपनी पत्नी के पेट से दूसरी जातियों के पुरुषों से संतान उत्पन्न कराते रहे है तथा अलग-अलग वर्णो से शादियां भी बहुत पहले होती रही है|इसीलिए द्विजाति कहा गया है |
ReplyDeleteवैसे तो ये वर्ण शंकर हैं |महा मिलावटी लोग है |शूद्र तो शुद्ध है |लेकिन ये.......................|
प्रकृति में बीज प्रधान होता है|जैसा बीज होता है |वैसा पेड़(वृक्ष) होता है|बीज प्रधान माना गया है |बीज प्रधान होने से संतान पिता की जाति की मानी जाती है|
ReplyDeleteजय जय राम जी |जय जय श्री कृष्ण जी |
1 - बृहज्जोषार्णव केजाति विवेक अध्याय मे तथा शक्ति संगम तन्त्र में और संस्कृत साहित्य में लिखा है कि यदुवंशी गोप अहीर क्षत्रिय हैं|
ReplyDelete2-श्री पंडित अयोध्या नाथ शर्मा एम०ए० प्रोफेसर सनातन धर्म कालेज कानपुर अपनी पुस्तक में लिखते है कि यदुवंशी अहीर क्षत्रिय हैं|
3-पार्लियामेन्ट एक्ट 1920 में अहीर गोप ग्वाल गूजर जाट सब क्षत्रिय एक जाति खानदान के हैं|
4-मेजर एम०एच०ई०निकोलस 95 वीं रसेलस इन्फेन्टरी यूनाइटेड सर्विस इन्स्ंटीट्यूट आफ इंडिया के भाग 30 नं०182 के जनरल में लिखते हैं कि गोप अहीर क्षत्रिय हैं|
5-मिस्टर भट्टाचार्य की पुस्तक इन्डियन कास्ट एण्ड ट्राइप् " भारत के फिरके नाम के ग्रन्थ में" मे लिखा है कि यदुवंशी राजपूतों की उत्पत्ति अहीरों से है|
6-श्री पंडित गोविंद प्रसाद मिश्र अपनी सर्व जाति संग्रह नामक पुस्तक में लिखते हैं किकृष्ण वसुदेव के पुत्र श्री नन्द के घर थे नन्द एक क्षत्रिय जाति के थे|
7-श्री अवध विहारी लाल पाण्डेय एम०ए०डी० फिल०
प्राध्यापक कृत भारत वर्ष का अभिनव इतिहास विभाग विश्वविद्यालय काशी पृष्ठ 85 तथा 1123 में प्राचीन आर्य क्षत्रिय की संतान गौड़ भार अहीर आदि क्षत्रिय हैं|
8-हिन्दुस्तान इतिहास दयानन्द कृत पृष्ठ 184 में अहीर राजपूत क्षत्रिय हैं|
9-पंजाब केसरी लाला लाजपत राय कृत भारत वर्ष के इतिहास मे लिखते हैं कि अहीर, गूजर,जाट क्षत्रिय हैं|
10-श्री पंडित छोटेलाल शर्मा कृत हिन्दू धर्म वर्ण व्यवस्था मण्डल फूलपुर जयपुर के जाति अन्वेषक पुस्तक 108 एवं 275 में जाट,गूजर एवं अहीर यदुवंशी क्षत्रिय हैं|
11-श्री कृष्ण चन्द्र दीपिका नामक पुस्तक में आभीर, गर्जर, जाट सब यदुवंशी क्षत्रिय हैं|
12-मारकण्डेय पुराणांक गोरखपुर पृष्ठ144 में तथा 155 पर सहांयगिरि पर्वत के उत्तर अहीर आदि जातियाँ क्षत्रिय हैं|
13- यादव वैजन्ती शब्द कोष में गोप अहीर यदुवंशी क्षत्रिय हैं|
14-श्री शिवराम कृत आप्टे संस्कृत हिन्दी शब्द कोष पेज 154 पर यादव गोप ही हैं| जब उपरोक्त सभी यदुवंशी गोप अहीर,जाट, गूजरों को क्षत्रिय कहते है तब आप लोग मिथ्या गाल क्यों बजाते हैं |
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Deleteभा०1,1 38 में सूर्य वंशी राजा सौदास ब्राह्मण वशिष्ठ के शाप से राक्षस हो गये |तब एक ब्राह्मण को खा लिया | विप्र पत्नी ने शाप दिया कि तुम स्त्री प्रसंग से मर जाओगे |फिर सौदास राजा ने स्वंय अपनी मदयन्ती रानी में ब्राह्मण वशिष्ठ से संतान उत्पन्न करायी |जिसका नाम अश्मक था और सूर्य वंशी माना गया तथा राजा बना |अश्मक की दश पीढ़ी पर श्री राम थे |जिनको हम सब भगवान कहते हैं और हम सब पूजा करते हैं |
ReplyDeleteभा०1,6,9, में सूर्य वंशी क्षत्रिय राजा रथीतर निःसंतान थे |वंश परम्परा की रक्षा के लिए राजा रथीतर ने अपनी पत्नी (रानी) में ब्राह्मण मुनि अंगिरा से पुत्रों को उत्पन्न कराया था |जिनमें कुछ क्षत्रिय रहे और कुछ ब्राह्मण रहे |
ReplyDeleteजिनके बाप दादा ने मुगलों की गुलामी करके और हमारे बीच में मिला कल्याणपुर रियासत करौली आज यदुवंशियों का इतिहास
Deleteमुसलमानों की गुलामी तो राजपूतों ने की है। जिसका प्रमाण अपनी जागीर बचाने के लिए अपनी राजकुमारियों का विवाह मुस्लिम बादशाहो से किया है। जो इतिहास के पन्नों पर अंकित है।
Deleteअहिर इस धरती पर जब से पैदा हुए कभी भी वह चाहे हिंदू हो अथवा मुसलमान हो किसी की गुलामी नहीं की है ज्ञात हो कि गुलामी करना ही शूद्र कहा जाता है। ईर्ष्या के कारण अथवा वीर होने से काबू में ना होने के कारण जातिवादी लोगों ने अहीरों को शूद्र लिख दिया। वहां लिखे रखे रहें और पढ़ते रहे लेकिन इतिहास गवाह है आज तक अहीरों ने किसी भी जाति की गुलामी नहीं की है यह जाति सदैव आत्म निर्भर रही है। भारतीय इतिहास के समय चक्र में इस भारत देश में और नेपाल में सत्ता में रहे हैं। भारत में तो हर समय किसी न किसी क्षेत्र में यह राजा रहे हैं जैसे जम्मू कश्मीर, हरियाणा , और दक्षिणी भारत में यह सत्ता में रहे हैं। दक्षिण भारत में कई कलचुरी वंश के राजा अपने को अहीर ही घोषित किए हैं अर्थात इतिहास में अहीर ही लिखे गए हैं। लिखने वाले लेखक अहीर जाति के नहीं हैं । इसी प्रकार जिस अहीर राजा ने अपनी सत्ता स्थापित की । वह समय-समय पर राजपूतों में समायोजित होते गए और अपने को यदुवंशी राजपूत घोषित करते गए । सुचित है कि यदुवंशी जातियां जनसंख्या वृद्धि के कारण अहीर जाट गुर्जर पाल सहित अनेकों जातियों उप जातियों में बढ़ती चली गई । करौली के राजघराने में भी लगभग 15:00 सौ से अधिक उप जातियों में यदुवंशी ढिढोर घोसी पाल जाट गुर्जर ग्वाल गोप आदि अनेकों यदुवंशी जातियां थी जिन्होंने करौली नरेश की रक्षा के लिए मुस्लिमों से युद्ध के दौरान अपने प्राणों की आहुति दी थी । शहीद होने पर अनेकों अहिराणीयो ने राजा के किले में जौहर किया था अर्थात सती हो गई थी । जिसकी पुष्टि आज भी किले में की जा सकती है । अहीर शासक जात रही है इस जात की जनसंख्या वृद्धि के कारण कुछ राजा बनते थे कुछ सैनिक बनते थे और बाकी आजीविका के लिए कृषि और गोपालन करते थे। किसी भी जाति में संपूर्ण जाति के लोग राजा नहीं बन जाते हैं राजा तो कोई एक ही बनता है बाकी सब आजीविका के लिए कोई न कोई व्यवसाय अपनाते हैं अधिक जानकारी के लिए वेद पुराण शास्त्रों का अध्ययन करें तभी कुछ टिप्पणी करें अन्यथा व्यर्थ की टिप्पणी करना टिप्पणी करने वालों की मूर्खता के सिवाय और कुछ भी नहीं है ।
कोई किसी जाति को शूद्र दे तो उसके लिखने से कोई भी जाति तब तक शुद्र नहीं हो सकती जब तक वह जाती शुद्र के कर्म न करें । अहीरों ने कभी भी शूद्र वर्ण का कार्य नहीं किया । सदैव स्वावलंबी रहे, सदैव आत्मनिर्भर रहें और अपना कार्य किया और अपने कार्यों से अपने परिवार का भरण पोषण किया । किसी भी समय चाहे जैसी भी परिस्थितियां आई हो डटकर सामना किया । किंतु कभी गुलाम नहीं हुए
Deleteव्यास कैवर्त कन्यायां, पाराशरचण्डालि गर्भोत्पन्नः
ReplyDeleteवशिष्ठो वैश्यगर्भश्र भारद्वाज शूद्री गर्भोत्पन्नः |
पद्म पुराण श्रुति खण्ड तथा भविषय पुराण में व्यास धीमरी मल्लाह के गर्भ से,पाराशर चण्डालिनी से,वशिष्ठ वैश्य सेऔर भारद्वाज शूद्री के गर्भ से उत्पन्न हुए थे |
देव गुरु वृहस्पति ने अपने छोटे भाई उतथ्य की पत्नी ममता से जारकर्म किया |जिससे भारद्वाज पैदा हुए |विवाद होने पर भारद्वाज को भरत ने पाला था |भारद्वाज शूद्री पुत्र थे , पर ब्राह्मण कहलाये |भरत ने भारद्वाज के पुत्र मन्यू को राजा बनाया |फिर मन्यू से चन्द्र वंश चला |
ReplyDeleteऋषि पाराशर नदी पार करते समय शूद्र केवट मल्लाह की कुंआरी पुत्री मचछोदरी (सत्यवती)के साथ दिन मे कुहरा उत्पन्न कर जारकर्म किया |जिससे वेद व्यास का जन्म हुआ |बाद में सत्यवती भीष्म के पिता राजा शान्तनु को विवाही गयी | शूद्री माता मचछोदरी से उत्पन्न वेद व्यास ब्राह्मण कहलाये |अपनी माता की आज्ञा का अनुपालन करते हुए वेद व्यास ने अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य की स्त्रियों में अम्बिका से
ReplyDeleteधृतराष्ट्र,अम्बालिका से पाण्डु तथा बांदी से विदुर ये तीन पुत्र पैदा जारकर्म से ही तो किये थे |जिससे चन्द्र वंश दोबारा आगे चला |
सबसे पहले पढें कि राजपूत और मुगलों के रिश्तेदारियों की गवाही देती ये फेहरिस्त...
Delete- जनवरी 1562- राजा भारमल की बेटी से अकबर की शादी (कछवाहा-अंबेर)
– 15 नवंबर 1570- राय कल्याण सिंह की भतीजी से अकबर की शादी (राठौर-बीकानेर)
– 1570- मालदेव की बेटी रुक्मावती का अकबर से विवाह (राठौर-जोधपुर)
– 1573– नगरकोट के राजा जयचंद की बेटी से अकबर की शादी (नगरकोट)
– मार्च 1577- डूंगरपुर के रावल की बेटी से अकबर का विवाह (गहलोत-डूंगरपुर)
– 1581- केशवदास की बेटी की अकबर से शादी (राठौर-मोरता)
– 16 फरवरी, 1584- भगवंत दास की बेटी से राजकुमार सलीम (जहांगीर) की शादी (कछवाहा-आंबेर)
– 1587- जोधपुर के मोटा राजा की बेटी से जहांगीर का विवाह (राठौर-जोधपुर)
– 2 अक्टूबर 1595- रायमल की बेटी से अकबर के बेटे दानियाल का विवाह (राठौर-जोधपुर)
– 28 मई 1608- राजा जगत सिंह की बेटी से जहांगीर की शादी (कछवाहा-आंबेर)
– 1 फरवरी, 1609- रामचंद्र बुंदेला की बेटी से जहांगीर का विवाह (बुंदेला, ओरछा)
– अप्रैल 1624- राजा गजसिंह की बहन से जहांगीर के बेटे राजकुमार परवेज की शादी (राठौर-जोधपुर)
– 1654- राजा अमर सिंह की बेटी से दाराशिकोह के बेटे सुलेमान की शादी (राठौर-नागौर)
– 17 नवंबर 1661- किशनगढ़ के राजा रूपसिंह राठौर की बेटी से औरंगज़ेब के बेटे मो. मुअज़्ज़म की शादी (राठौर-किशनगढ़)
– 5 जुलाई 1678- राजा जयसिंह के बेटे कीरत सिंह की बेटी से औरंगज़ेब के बेटे मो. आज़म की शादी (कछवाहा-आंबेर)
– 30 जुलाई 1681- अमरचंद की बेटी औरंगज़ेब के बेटे कामबख्श की शादी (शेखावत-मनोहरपुर)
गोतम ऋषि की पत्नी अहिल्या ने इन्द्र से जानकर जारकर्म किया था |
ReplyDeleteपाण्डु की पत्नी कुन्ती थी|मुनि शाप के कारण पाण्डु स्त्री से सहवास नहीं कर सकते थे|उस कुन्ती के गर्भ मे धर्मराज से युधिषठर, पवनदेव से भीम,इन्द्र से अर्जुन ,और सूर्य से कर्ण उत्पन्न हुए थे |
ReplyDeleteपाण्डु की दूसरी स्त्री थी माद्री उसके अश्विनी कुमारों द्वारा जारकर्म से जुड़वाँ नकुल और सहदेव दो पुत्र उत्पन्न हुए थे |
ReplyDeleteब्रह्मा जी के पुत्र अत्रि थे |कर्दम ऋषि की पुत्री अनुसुइया अत्रि ऋषि को विवाही गयी |अत्रि अनुसुइया के योग से चन्द्रमा का जन्म हुआ |चन्द्रमा ने बृहस्पति की पत्नी तारा से जारकर्म किया |तारा गर्भवती हो गयी |चन्द्रमा और बृहस्पति से बड़ा विवाद हुआ |फिर बृम्हा ने बीच में पड़कर
ReplyDeleteदोनों का सुलह करा दिया और पैदा हुआ पुत्र बुध को चन्द्रमा को दिला दिया और ब्राह्मणी तारा को बृहस्पति को दिला दिया |फिर चन्द्रमा के पुत्र बुध से ही चन्द्र वंश शुरु हुआ |बुध ने सूर्य वंशी बाला इला से विवाह किया |जिससे पुरुरवा का जन्म हुआ |पुरुरवा ने उर्वशी अप्सरा के विवाहोपरान्त आयु सहित छे पुत्र उत्पन्न हुए |आयु ने अंगिरा ब्राह्मण के वंशज पितर कन्या प्रभा से विवाह किया |जिससे
नहुष सहित पाॅच पुत्र उत्पन्न हुए |फिर नहुष ने पुलह ब्राह्मण के वंशज पितर कन्या बृजा से विवाह किया |नहुष के यति, ययाति सहित छे पुत्र हुए | यति संन्यासी हो गये तथा ययाति राजा बनाया गया |ययाति ने ब्राह्मण शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी से विवाह किया तथा शर्मिष्ठा साथ आयी |
ययाति-देवयानी के योग से दो पुत्र यदु और तुर्वसु उत्पन्न हुए तथा ययाति-शर्मिष्ठा के योग से अनु, द्रुह ,पुरु तीन पुत्र उत्पन्न हुए |यदु ने बहु पत्नी विवाह की पृथा चलाई |यदु के कई पत्नियां थीं |यदु से यादव वंश चला |बहु पत्नी विवाह की पृथा चलाये जाने के कारण यदुवंश विशाल वंश वृद्धि को प्राप्त हुआ |जिसकी संख्या कई करोडो़ में पहुँच गई |जिसमे कई उपकुल,कई जातियां,कई उपजातिया बन गयीं |जिसमें यादव, अहीर,गोप, ग्वाल,गूजर,जाट,पाल,सहित हजारों जातियां बनी हैं |ये तथा कथित अपने को यदुवंशी राजपूत कहने वाले लोग जो राजाओं की सूची और अपने कुछ गाॅव गिनाते है |ये मुट्ठी भर जनसंख्या की बदौलत क्या राजा बन सकते थे कभी नहीं |इनके लिए यादव अहीर गोप ग्वाल पाल जाट गूजर यदुवंशियों के अलावां सैकड़ो यदवंशी कुल की जातियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है |इन लिखित और अलिखित यदुवंशी जातियों को किसी भी राजपूत क्षत्रिय से प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है|
गरीब, दुर्वासा कोपे तहां ,समझ न आई नीच |
छप्पन कोटि यादव कटे ,मची रूधिर की कीच |
ये तो छप्पन करोड़ युवा सैनिक वर्ग यादवों का है |इस जनसंख्या से कई गुना ज्यादा विभिन्न जातियों में वर्गों में बंटे यादवों की संख्या थी |उस समय प्रकृति पर ही कृषि निर्भर थी |इतनी बडी़ विशाल जनसंख्या की आजीविका के लिए
कृषि और गोपालन ही मुख्य थे|जिसकी शिक्षा हलधर बलराम ने कृषि की और कृष्ण ने गोपालन की दी है |उस
युग मे तो सभी राजे महाराजे ये दोनो कार्य करते थे |
जय हो धनगर गडरिया समाज के कुल शिरोमणि भगवान श्री कृष्ण
ReplyDeleteकोई फालतू का ज्ञान ना पेले भगवान श्री किशन धनगर गडरिया थे
ReplyDeleteसखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तम् |
Deleteहे कृष्ण हे यादव हे सखेति |
गीता पढ़ ले |
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ReplyDeleteराम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास जी की रचना है |गोस्वामी जी राम चरित मानस में कहते हैं |
ReplyDeleteसिया-राम मय सब जग जानी |
करहुॅ प्रणाम जोरि जुग पानी |
गोस्वामी जी ने सम्पूर्ण संसार की नर-नारियों को सिया राम के रुप मे प्रणाम किया और माना |लेकिन मूर्खो ने राम चरित मानस मे भी अवांछित चौपाइयाॅ जोड़ दी है |
संतों ने इस देश की जनता को एक सूत्र मे पिरोने की बहुत कोशिश की है जैसे गंगा मे हर जाति वर्ण के स्त्री-पुरुष नहाते हैं |सबके शरीर के अंग पानी में धुलते है और वह गंगा का पानी लोग पीते है और अपने घर लाते है |लेकिन फिर भी इन हिन्दुओ मे ऊॅच-नीच भेदभाव समाप्त नहीं हुआ |
ReplyDeleteभगवान कृष्ण गीता मे उपदेश देते हए कहते हैं कि सभी प्राणियों के भीतर मैं हूॅ और सभी प्राणी मुझमें है |लेकिन फिर भी इस देश के हिन्दू नहीं समझते |
ReplyDeleteइतिहास के अनुसार हरियाणा के अहीर यदुवंशियो से और राजस्थान के राजपूतों से हुए युद्ध मे राजपूत पराजित होकर भाग खडे़ हुए |राजपूतों को भारी क्षति उठानी पडी़ |अहीर यदुवंशियों ने हरियाणा में अपनी राज्य सत्ता बनाये रखी |
ReplyDeleteAhiro na kon we yudh zeet liye Kabhi koi competition jeeta hai Jo yudh jeeto ge
Deleteऋषियों द्वारा लिखे ग्रन्थों मे यदुवंशी-अहीरों(यादवों) तथा कई अन्य जातियों के विषय मे अवाॅछित तथा अपमान जनक
ReplyDeleteटिप्पणियां मूर्ख ब्राम्हणों द्वारा जो बाद में ग्रन्थों में जोडी़ गयी हैं तथा इन्हें साक्ष्य रुप में मूर्खो द्वारा जो प्रस्तुत की गयी हैं |इन्हें सत्य का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है |इन मूर्खो ने राम के भक्त महावीर हनुमान जी को पुरुष से बन्दर बना दिया | महान ऋषि काकभुसुण्डि को कौआ बना दिया | माता सीता की रक्षा करने मे अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर जटायु को जो राजा दशरथ का सहपाठी था उसे गिद्ध बना दिया |राजा दशरथ और कौशल्या के योग से उत्पन्न सबसे बड़ी राजकुमारी शान्ता जो श्रृॅगी ऋषि को विवाही गयी |श्रृॅगी ऋषि को हिरणी से उत्पन्न लिख दिया |
मानडूक मुनि को मेंढकी से उत्पन्न लिख दिया |शुकदेव मुनि को सुअनि से उत्पन्न लिख दिया |अगस्त्य ऋषि को घडे़ से उत्पन्न लिख दिया |इन मूर्खो ने कितनी असत्य बातें लिखकर अपमानित करने की कोशिश की है और जो शिक्षित होकर इनकी लिखी हुई बातों को सही मानकर साक्ष्य प्रस्तुत करे |वह महा मूर्ख है |
कहा गया है :-
जन जन मे हरि ज्योति है, विद्यमान सब ठौर |
भक्ति हीन जाने नही , यूं भटके सब ओर |
सबके भीतर है बसा, सर्व शक्तिमय राम |
अखण्ड अजन्मा ईश है, परम पुरुष गुण धाम |
लिखने वाले अपनी उत्पत्ति तो देख लेते |
साक्ष्य प्रस्तुत करने वाले अच्छी तरह से जान ले कि हिन्दू धर्म में जब समाज के लोग भागवत कराते है |तो अहीर गोप ग्वाल बाल और गोपाल के साथ-साथ गोपियों की भी पूजा (कथा) होती है |अहीर-यादवों की गाय पूज्य है ,घी पूजा मे प्रयोग होता है |दूध भगवान के चरणामृत के रुप में प्रयोग होता है |यहाॅ तक कि अहीर-यादवों की गाय का
गोबर तक दीपावली के अवसर पर गोवर्धन पूजा के रुप में
पूजा जाता है |राजपूतों के घर का कया क्या पूजा जाता
है ?
अहीरों(यादवों)के परिवारों की देवियों मे राधा सहित गोपियां, नन्द पुत्री महामाया विन्ध्यवासिनी देवी,और माता गायत्री पूजी जाती हैं |
ReplyDeleteबाबा नन्द और यशोदा माता की भागवत मे कथा होती है |कवि सूरदास ने यशोदा माता और ग्वाल,बाल,गोपाल तथा गोपियों की पूजा के लिए सूर सागर की रचना कर समाज के कल्याण के लिए एक अनुपम ग्रन्थ दिया है |
ReplyDeleteअस्त्र हस्ताश्च धन्वानः, संग्रामे सर्व सम्मुखे |
ReplyDeleteप्रारम्भे विर्जिता येन,सः गोपः क्षत्रिय उच्यते|
संस्कृत साहित्य368 में अस्त्र शस्त्र हाथ में लेकर संग्राम में सम्मुख वे सभी गोप क्षत्रिय हैं |
शूद्री माता से उत्पन्न परम पूज्य महान ब्रम्हज्ञानी संत वेद व्यास द्वारा किसी भी जाति के लिए व्यास स्मृति में अवांछित टिप्पणी कदापि नहीं लिखी गयी है |ब्रम्हज्ञानी संत की नजर मे पूर्ण संसार के प्राणी ईश्वर अंश और ईश्वर रुप होते हैं |यह अवांछित टिप्पणी जातिवादी अज्ञानी मूर्खो द्वारा बाद में जोड़ी गयी है | राम राम जी |
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ReplyDeleteSakheti matvva prasbham yaduktam .he krishan he yadav he sakheti Geeta,
ReplyDeleteAr bevakufo jb grantho me saf saf likha hai ki yadu ke bansaj ab yadubans ya Yadav ke nam se jane jayege Geeta Arjun bhagwan ko He krishn He yadav He sakheti hi bola hai fir taklif kya hai
ReplyDeleteahi ra ahi ka matlab naag ya snake hota hai..aur krishna ne kalia naag ka mardan kiya tha ..aur unhe ahi r kaha gaya hai..doosri baat..tumhare edit kiye hue hindi main likhe hue kisi bhi granth ko padhne se kam se kam ahir nhi manne wale ki hum shudra hain..samjhe agar tumhate paas saboot hain to hamare pass bhi sabut hain.aur ab to jinhe valmiki kaha jaata hai matlabmehtar ya bhangi kaha jata rha hai..woh bhi kehte hain ki hum woh haare hue rajput sainik hain jinpar muslim shashko ne dharm na badlne ke karan apna maila uthwaya aur issi vajah se hamare janaeu ya sacred thread bhang ho gaye aur hum bhangi kehlaye..aur imke surname chouhan solanki parmar hain...doosri baat itihas main jaipur rajgharana woh rajgharana hai jisne na sirf mughlo se roti beti ka rishta rakha..balki diya kumari ne swagotra main shadi bhi ki..lekin inhi ke vanshajo se ke samne na sirf tum sab rajput salaam thokoge balki..shadi byah bhi karoge..
ReplyDeleteग्रंथों के अनुसार राजपूत शूद्री के गर्भ से उत्पन्न हुए और कुछ राजपूत अपनी औरतों के पेट में ब्राह्मणों से संतान उत्पन्न कराया । ये राजपूत वर्ण शंकर हैं अर्थात दोगला हैं । इनके माता-पिता सजातीय नहीं हैं । इसीलिए इन्हें सवर्ण कहा जाता है । सवर्ण का अर्थ सभी वर्णों की मिलावट होता है । न मां असली न पिता असली । ये मैं नहीं हिन्दू धर्म के ग्रंथ कह रहे हैं । ये ऐसा रिवाज
Deleteपहले रखे हुए थे जिसका नाम था नियोग प्रथा । इस प्रथा के अन्तर्गत ये अपनी औरतों में दूसरी जातियों के पुरुषों से संतान उत्पन्न कराते थे । ये है इनकी असलियत ।
किस हिन्दू ग्रंथ में लिखा है, कृपा करके बताएं में जानना चाहता हूं।
Deleteसत्यार्थ प्रकाश और भागवत पुराण, हरिवंश पुराण, पद्म पुराण, भविष्य पुराण, महाभारत आदि पढ़कर जानकारी हासिल करें ।
DeleteAhir yadav bane, teli bane rathore, kachhi bane kushwah shi h
ReplyDeleteGaderiya adivasi cast hai
ReplyDeleteJabki Ahir gwal Chandravanshi Yadav - yaduvanshi Balramkrishnavanshi Hain
Him Ahir vaidik Kshatriya hain
"""" Cheer ke Baja do lahoo dushmano ke Sheene ka
Yahi andaaz hai aheer hokar Keene ka
Jahan Ahir honge vahan (GADERIYON) shudra ,Bhangi neech adivasiyon
Par atyachar aur shoshan hona lazmi hai
jAy aHiR jaY yAdAv Jay mAdHaV
Jay shri Balram
Jay shri Krihna
----- gaderiya bhangi gandagi shoodra neech
Adivasi vanvasi jaati hai
Teri maa chamar tu bhangi randi ki aauald saale hamari aaulad ho tum ahir
DeleteAhir shudr hai or rahege
DeleteGadriya Kshatriya hai
Suar ka bachha h tu neech ahir suar sunn ahir to thik h but tu jo ahir neech hena tu alag h tu neech hi rahio tere baap dade bhi bhed or bakeri charaya karte the ghosi or gaddi tumhare baap hena chamar ja puchh apne mulle bapo se maderchod ke bachhe bolne se pahele soch liya kar gaye bhi ek janber hi h or bhes bhi dalle suar
DeleteCheer ke Baha do lahoo dushmano ke Sheene ka yahi andaaz hai aheer hokar jeene ka jahan aheer honge vahan gaderiyon par atyachar lazmi hain
ReplyDeleteJay aheer jay Yadav jay madhav
Jay shri Balram
Jay shri Krishna
Bhan ke lode Gadariya ka nam bhi hai ulekh mai chutiya ki aauald gaandu se
DeleteJangli banjare hote hai ahir Yadav itihas churane m lage hue hai have
ReplyDeleteTera itihaas kb tha saale dusro ko mitne ke liye ye rajput ne apni behan bitiya mughalo ko ki jooo aaj baat karte hai sirph yeh rajput apne maharana prataap tk ke nahi hue hai... Hmre gheee dudh ke trh shudh itihaas gand karne me lage hai apna itihaas bachane ke chakkr me apni behan bitiya mughalon ko dede...... Yeh rajput ke baje se aaj hamare hindu dharam pe sankat me pd gaya hai... In kutto ke peelo ke baje se hmre ved purna ko aapavitra kar diya ha yeh saale vedo me daag laga diya jo ki hmra yadav aur ahir ka barchus milta hai.... Kutto ko yeh tk nahi pta hai phleee sb apana apna karaye kar the aur ahiroke siwa na the.....jb me hmre me dharm me yudh sirph hak ke liye vo bhi apno ke bich.... Saale in rajput to ne hmne maharana prtap sath tk nahi diya aur behan betiya ko mughalo ke ghr.... Unhone akele lade the.... Apne dushman kisi ne sath nahi diya tha jo aaj bol rahe hai.... In tooo riste daari nibhaye thi.... Jija... Fufa ki.... Jo khud asudh hai vo kya shudh history ke baat karege unke khon sirph mughalo se riste dhari me nibhane me laga raha....
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ReplyDeleteजय जय राम
ReplyDeleteThari behan ki chut me Yadavo ka loda madharchod behan randiputra teri behan ko chodu white house pe international Media k samne
ReplyDeleteSun bhosdke kitna galt chapo ge sab farzi mostly aur jaa tak tu ahir ko ek me shudra diya hai toh tum rajput ko bhi bhram bible puran me neech ki stiti me rakha hai jaoo dekhlo roj yeh farzi wada mat karo 🙏🙏🙏
ReplyDeleteमुगलों को अपनी बेटियां बेचने वाले किस बात पर घमंड करते हैं? 😂😂😂😂😂
ReplyDeleteअहिरण्ड ही चुदती मुघलो से आजतक मरवा कर लाल चूत हो गई है अहिरानदियो की माँ का भोसड़ा मारा खिलजी ने
Deleteअहिरण्ड ही चुदती मुघलो से आजतक मरवा कर लाल चूत हो गई है अहिरानदियो की माँ का भोसड़ा मारा खिलजी ने
Deleteमैंने तो नाम भी नहीं लिया तुम्हें खुजली कैसे होने लगी
Deleteराजपूतों थोड़ा अपने बारे में Wikipedia पर भी पढ़ लिया करो, यादवों को गाली देते हो मै जानता हूं तुम नहीं पढ़ोगे वहां में ही लिख देता हूं।
ReplyDeleteकुछ इतिहासकार विदेशियों के हिंदू समाज में विलय हेतु यज्ञ द्वारा शुद्धिकरण की पारम्परिक घटना के रूप मे देखते हैं।[9]
सोलहवीं सदी के, फ़ारसी भाषा में तारीख़-ए-फ़िरिश्ता नाम से भारत का इतिहास लिखने वाले इतिहासकार, मोहम्मद क़ासिम फ़िरिश्ता ने राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में कहा है कि:-
जब राजा, उनकी विवाहित पत्नियों से संतुष्ट नहीं होते थे, अक्सर उनकी महिला दासियो द्वारा बच्चे पैदा करते थे, जो सिंहासन के लिए वैध रूप से जायज़ उत्तराधिकारी तो नहीं होते थे, लेकिन राजपूत या राजाओं के पुत्र कहलाते थे।
Ajj kal sab yadav bnana chatey h tu bhi bnana chta ithias padh le phle bhai tere fltu gyan se kuch nahi hoga
ReplyDelete🤣🤣🤣 tmlog agir mahisasur ke vansaj shudra kahi ke visnu puran pdho kb tmlog yadav kbse ho gye
Deleteयादव क्षत्रिय ओर शूद्र कन्या की नजायज ओलाद राजपूत कहलाती है,
ReplyDeleteकुत्ते ओर सुवर की tatti से पैदा हुई जाती ये शूद्र किरार बंजारा जो सेंगर जादौन लिखती है खुद को
Rajput sale khajua .ye sala sako huno ki oulad hai.
ReplyDeleteGadriya kshatriya hai bsdk,, mahabharat me ulekh hai bsdk rajputo
ReplyDeleteईश्वर ने धरती पर अनेक प्राणी बनाए हैं उनमें से एक प्राणी मानव है जो नर नारी के रूप में बनाया है। मनुष्यों की उत्पत्ति का द्वार समान है और शरीर के अंग ईश्वर द्वारा समान बनाए गए हैं। ईश्वर ने सबको पृथ्वी जल अग्नि वायु का उपयोग भी सब को समान दिया है । किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया है। यह समस्त जातियां मानव कृत बना ली गई हैं जो एक दूसरे को ऊंचा नीचा छोटा बड़ा अपमानित करने के लिए विभाजित कर लिख ली गई हैं । जिनमें जिनमें कोई सच्चाई नहीं है। आत्मा की कोई जाति नहीं होती है वह ईश्वर अंश होती है और शरीर की भी कोई जाति नहीं होती है। वह भी सभी का प्रकृति के पांच तत्वों का बना हुआ होता है । इंसान की बनाई गई जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था शिवाय मूर्खता के और कुछ नहीं है।
ReplyDeleteahir gadariye hote hai
ReplyDeleteShudra hote hai
Obc me ate hai
Pichde warg me ate hai
Chu**, bosd*** wale hote hai
Rajputon ko apna baap mante hai
Humne jo apnaye nahi vo hote hai ahir, yadav
भगवान श्री कृष्ण की गोपू की नारायणी सेना जिसने महाभारत में युद्ध किया था क्षत्रिय कहलाती है। अहीर क्षत्रिय वर्ण की जाती है। किसी के लिखने से किसी का वर्ण नहीं बदल जाता है । किसी का लिखा हुआ हम नहीं स्वीकार करते हैं।
ReplyDeleteवंशावली-अत्रि से चंद्रमा, चंद्रमा से बुध , बुद्ध से पूरुरवा।
ReplyDeleteपुरुरवा चंद्र वंश का प्रथम राजा कहा गया है । भारत में सबसे पुराने ग्रंथ ऋग्वेद में पुरुरवा को गोप और उसकी पत्नी उर्वशी को मतसय पुराण में अहीर कहा गया है। जिससे सिद्ध होता है कि चंद्रवंश अहीरों का वंश है। इसी पूरुरवा से आयु। आयु से नहुष। नहुष से ययाति । ययाति से यदु पैदा हुए। यदु से यदुवंश/यादव वंश चला। इस प्रकार यदुवंशियों का मां बाप चंद्रवंशी प्रथम राजा पुरुरवा गोप/अहीर और मां उर्वशी अहीर है अर्थात यदुवंशियों का मां बाप चंद्रवंशी अहीर है । इस प्रकार अहीरों के पुत्र यदुवंशी हैं अर्थात अहीर चंद्रवंशी क्षत्रिय है और यदुवंशी भी । क्योंकि अहीरों के पुत्र ही यादव हुए ।
उपरोक्त अनुसार सिद्ध किया जा चुका है कि चंद्रवंशी अहीर क्षत्रियों के पुत्र यदुवंशी राजपूत है । ऐसा चंद्रवंशी वंशावली से सिद्ध है । अहीरों के विरुद्ध षड्यंत्र करते हुए जो कुछ भी लिखा गया है। उसे हम नहीं स्वीकार करते हैं क्योंकि किसी के लिखने से किसी की जाति वर्ण और शरीर नहीं बदल जाता है ।
Deleteयादव और अहीर अलग-अलग कुल हैं
ReplyDeleteयादव-प्राण-कार्ये च शक्राद अभीर-रक्शिणे।
गुरु-मातृ-द्विजानां च पुत्र- दात्रे नमो नमः।।
(Garga Samhita 6:10:16)
Translation: जिन्होंने यादवों की रक्षा की, जिन्होंने राजा इंद्र से अहीरों की भी रक्षा की और अपनी माता, गुरु और ब्राह्मण को उनके खोए हुए बेटों को वापस दिलाया, मैं आपको आदरणीय प्रणाम करता हूँ।
अन्ध्रा हूनाः किराताश् च पुलिन्दाः पुक्कशास् तथा
अभीरा यवनाः कङ्काः खशाद्याः पाप-योणयः
(Sanatakumara Sahmita - Sloka 39)
Translation : अंध्र, हुण, किरात, पुलिंद, पुक्कश, अहीर, यवन, कंक, खस और सभी अन्य पापयोनि से उत्पन्न होने वाले भी मंत्र जप के लिए योग्य हैं।
आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे ।
कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते ॥ (Ramcharitmanas 7:130)
Translation अहीर, यवन, किरात, खस, श्वपच (चाण्डाल) आदि जो अत्यंत पाप रूप ही हैं, वे भी केवल एक बार जिनका नाम लेकर पवित्र हो जाते हैं, उन श्री रामजी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥
किरात- हूणान्ध्र- पुलिन्द-पुक्कश आभीर- कङ्क यवनाः खशादयाः।
येन्ये च पापा यद्-अपाश्रयाश्रयाः शुध्यन्ति तस्मै प्रभविष्णवे नमः।।
(Srimad Bhagavatam 2:4:18)
Translation: किरात, हूण, आन्ध्र, पुलिन्द, पुल्कस, अहीर, कङ्क, यवन और खश तथा अन्य पापीजन भी जिनके आश्रयसे शुद्ध हो जाते हैं, उन भगवान् विष्णु को नमस्कार है ॥
ब्राह्मणादुप्रकन्यायामावृतो नाम जायते ।
आभीरोऽम्बष्ठकन्यायामायोगव्यां तु धिग्वणः ॥ १५ ॥
(Manusmriti 10:15)
Translation: उग्र कन्या (क्षत्रिय से शूद्रा में उत्पन्न कन्या को उग्रा कहते हैं) में ब्राह्मण से उत्पन्न बालक को आवृत, अम्बष्ठ (ब्राह्मण से वैश्य स्त्री से उत्पन्न कन्या) कन्या में ब्राह्मण से उत्पन्न पुत्र अहीर और आयोगवी कन्या (शूद्र से वैश्य स्त्री से उत्पन्न कन्या) से उत्पन्न पुत्र को धिग्वण कहते हैं।
अन्त्यजा अपि नो कर्म यत्कुर्वन्ति विगर्हितम् आभीरा ।
स्तच्च कुर्वति तत्किमेतत्त्वया कृतम् ॥ ३९ ॥
(Skanda Purana: Nagarkhand: Adhyaya 192 Sloka 39)
Translation: अन्यज जाति के लोग भी जो घृणित कर्म नहीं करते अहीर जाति के लोग वह कर्म करते हैं।
आभीरैर्दस्युभिः सार्धं संगोऽभूदग्निशर्मणः ।
आगच्छति पथा तेन यस्तं हंति स पापकृत् ॥ ७ ॥
(Skanda Puran: Khanda 5:Avanti Kshetra Mahatmyam : Adhyay 24: Sloka 7)
Translation : उस जंगल में अहीर जाति के कुछ लुटेरे रहते थे। उन्हीं के साथ अग्निशर्मण की संगति हो गयी। उसके बाद बन के मार्ग में आने वाले लोकों को वह पापी मारने लगा।
उग्रदर्शनकर्माणो बहवस्तत्र दस्यवः ।
आभीरप्रमुखाः पापाः पिबन्ति सलिलं मम ॥ ३३ ॥
तैर्न तत्स्पर्शनं पापं सहेयं पापकर्मभिः ।
अमोघः क्रियतां राम अयं तत्र शरोत्तमः ॥ ३४ ॥
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा सागरस्य महात्मनः ।
मुमोच तं शरं दीप्तं परं सागरदर्शनात् ॥ ३५ ॥
(Valmiki Ramayan -Yudhkand: Sarg22: Shlok 33-35)
Translation : वहाँ अहीर आदि जातियों के बहुत-से मनुष्य निवास करते हैं, जिनके रूप और कर्म बड़े ही भयानक हैं। वे सब-के-सब पापी और लुटेरे हैं। वे लोग मेरा जल पीते हैं ॥ ३३ ॥ उन पापाचारियों का स्पर्श मुझे प्राप्त होता रहता है, इस पाप को मैं नहीं सह सकता। श्रीराम ! आप अपने इस उत्तम बाण को वहीं सफल कीजिये ॥ ३४ ॥ महामना समुद्र का यह वचन सुनकर सागर के दिखाये अनुसार उसी देश में श्रीरामचन्द्रजी ने वह अत्यन्त प्रज्वलित बाण छोड़ दिया ॥ ३५ ॥
शूद्राभीरगणाश्चैव ये चाश्रित्य सरस्वतीम्।
वर्तयन्ति च ये मत्स्यैर्ये च पर्वतवासिनः।। १०।।
(Mahabharata -Sabhaparva:Adhyay 35:Shlok 10)
Translation : सरस्वती नदी के तट पर रहने वाले शूद्र अहीर गण थे। मत्यस्यगण के पास रहने वाले और पर्वतवासी इन सबको नकुल ने वश में कर लिया ।
यादव महिलाओं के साथ अहीरों ने किया बलात्कार
ततस्ते पापकर्माणो लोभोपहतचेतसः
आभीरा मंत्रयामासः समेत्याशुभदर्शन का "
प्रेक्षतस्तवेव पार्थस्य वृषणयन्धकवरस्त्रीय
मुरादाय ते मल्लेछा समन्ताजज्नमेय् ।
(Mahabharata: Mausalparva: Adhyay 7 Shlok -47,63)
Translation: लोभ से उनकी विवेक शक्ति नष्ठ हो गयी, उन अशुभदर्शी पापाचारी अहीरो ने परस्पर मिलकर हमले की सलाह की। अर्जुन देखता ही रह गया, वह म्लेच्छ डाकू (अहीर) सब ओर से यदुवंशी - वृष्णिवंश और अन्धकवंश कि सुंदर स्त्रियों पर टूट पड़े।
भीलन लूटी गोपियां वही अर्जुन वही बाण
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